सच्ची स्वतंत्रता
स्वतंत्र भारत है मेरा घर
जिसको बलिदान दिए थे हजारों नर
बात है यह समय की
जब गुलाम बने थे हम
हाथ में थी हथकड़ी और बेड़ियां
मन में एकता के हथगोले
लगाकर जान लुटा कर खजाने
लड़ी थे जिसकी लाज बचाने
क्या आज वह भारत स्वतंत्र है
क्या आज भी वह देश प्रेम है
स्वतंत्रता मिली थी दो सौ साल बाद
आधी संस्कृति हुई थी बर्बाद
हुई उस समय सच्ची एकता उत्पन्न
और असली बल उजागर
जात पात की दीवारे टूटी थी
और मिली इंसाफ की रोटी थी
लेकिन क्यों आज रात का भेद है
क्यों आज काला खराब और सफेद स्वच्छ है
क्या ऐसा स्वतंत्र होना स्वतंत्रता है
या सिर्फ भारतीय मूल्यों को खोना है
आज भी विलायती संस्कृति
बनी हुई है जवान पीढ़ी की कृति
क्यों यह अब अंग्रेजों का है दोष
या फिर यह है विद्वानों का खामोश
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